एक पिता की इमोशनल कहानी


जब मैं घर से गुस्से में बड़बड़ाते हुए निकल आया था और बस स्टैंड की तरफ आगे बढ़ने लगा। मैं मन ही मन बड़बड़ा रहा था। पता नहीं कितने पैसे छुपा के रखे हैं। लेकिन मेरे लिए एक bike नहीं ले सकते। अब मैं यहां से चला जाऊंगा और तब तक वापस नहीं आऊंगा, जब तक मैं खुद के पैसों से बाइक नहीं खरीद लेता। 

 इतना सोच ही रहा था तभी मेरे पैर में मुझे कुछ चुभने का एहसास हुआ। नीचे देखा तो समझ आया कि जल्दबाजी में पापा के जूते पहन आया हूं। उन जूतों में कील उभरी हुई थी। जो मेरे पैर मैं बार-बार घाव किए जा रही थी।  लेकिन उस समय गुस्सा अधिक था, तो मैं बड़बड़ाते हुए आगे बढ़ गया। एकाएक मुझे याद आया कि मैं पापा का पर्स भी साथ ले आया हूं।

 मेरे खुराफाती दिमाग में एक ख्याल आया क्यों ना आज पापा का पर्स चेक किया जाए। जिसे आज तक उन्होंने किसी को हाथ तक नहीं लगाने दिया था।  पता नहीं कौन सा खजाना छुपा है इस पर्स में, जो किसी को हाथ नहीं लगाने देते थे। जब मैंने पापा का वह पुराना पर्स खोलकर देखा तो उसमें पैसे तो नहीं मिले। लेकिन पैसों की जगह पर एक डायरी रखी हुई थी।

 तब मैंने सोचा, ओह्ह...! तो यहां खजाना छुपा रखा है। मैं समझ रहा था, कि यहां पापा ने लिखा होगा की किस से कितने पैसे लेने हैं, और किसको कितने पैसे दिए हैं। लेकिन मैं गलत था। जब मैंने उस छोटी सी डायरी का पहला पेज खोलकर देखा तो वहां पर जो लिखा था, वह थोड़ा सीरियस कर देने वाला था।  डायरी में जो लिखा था, उसे पढ़ने के बाद मेरे चेहरे पर जो एक्सप्रेशन थे वह गायब हो चुके थे।

 क्योंकि डायरी में वैसा कुछ नहीं था, जैसा मैं सोच रहा था। वहां पर उन पैसों का हिसाब लिखा हुआ था, जो अलग अलग कामों के लिए अलग-अलग लोगो से उधार लिए गए थे। उस लिस्ट में कंप्यूटर के नाम पर भी पैसे लिए गए थे। कुछ यूं लिखा था। 50 हजार बेटे के कंप्यूटर के लिए। यह वही कंप्यूटर था जिसे मैं आज तक यूज़ कर रहा हूं। लेकिन मुझे यह पता नहीं था, उस कंप्यूटर को खरीदने के लिए पैसे कहां से आए थे। लेकिन आज पता चल रहा था।



 मुझे आज भी याद है। जब मैंने पहली बार कैमरे के लिए जिद की थी। जो मेरे पापा ने मुझे 2 हप्ते बाद मेरे बर्थडे पर ला कर दिया था। जिसे देख कर मैं बहुत खुश हुआ था, और मुझे खुश देखकर मुझसे कहीं ज्यादा अगर कोई खुश था। तो वह थे 'पापा'। अब मेरे चेहरे से गुस्सा एकदम गायब हो चुका था। जब मैंने आगे का पन्ना पलटा तो वहां पर कुछ wishes (इच्छाएं)  लिखी हुई थी।

 पहली जो विश थी उसमें जो लिखा हुआ था "अच्छे जूते पहनना"। यह बात मेरी कुछ समझ नहीं आई। तभी मेरा पांव अचानक सड़क पर भरे हुए पानी पर जा पड़ा और तभी मेरे पांव मैं कुछ गीलीपन होने का एहसास हुआ।  जब मैंने जूता उतार कर देखा तो उसका तला टूटा हुआ था। यह देखकर मुझे डायरी में लिखी बात याद आ गई।

तभी मुझे मां पापा की कही बातें भी याद आ रही थी। कि कैसे माँ जब कहा करती थी पापा से - "अब तो जूते पुराने हो गए नए ले लीजिए"। तो पापा अक्सर यह कहकर टाल दिया करते थे-- "जूते अभी और चलेंगे अभी कुछ दिन पहले तो लिए थे"।  मुझे आज समझ आ रहा था कि कितने दिन और चलेंगे। साथ ही साथ यह भी समझ आ रहा था, कि पापा पर्स को क्यों छुपा कर रखते थे।

तभी उस डायरी को पढ़ते हुए बस स्टैंड पर पड़ी बेंच पर आकर बैठ गया। अब उस डायरी का आखरी पन्ना   बचा हुआ था। उस पन्ने को जब मैंने पलट कर देखा तो वहां कल की date लिखी हुई थी। तरीख के नीचे लिखा हुआ था 50 हजार रुपए बाइक के लिए बस इतना पढ़ा और दिमाग सन्न रह गया। अब मेरे मन में कोई शिकवा गिला नहीं बचा था। बस मेरी आंखों से आंसू चले जा रहे थे। मुझे आज तक नहीं पता तब मैं क्यों रोए जा रहा था।

अब मैं जल्दी से घर की तरफ भागा। लेकिन जूतों की वह कील पाँव में अब तक घाव बनाने में कामयाब हो चुकी थी। मैंने जूतों को रास्ते में ही निकाल कर फेंक दिया और भागते लड़खड़ाते हुए घर जा पहुंचा लेकिन पापा घर पर नहीं थे। मैं समझ गया वह कहां थे। मैं सीधा पास वाली बाइक एजेंसी की तरफ भागा। पता नहीं आज कहां से इतनी ताकत आ गई थी, कि मैं भागते हुए थक नहीं रहा था और वह भी बिना जूतों के नंगे पैर।

  जैसे तैसे मैं बाइक एजेंसी पर पहुंचा, पापा वही थे। मैंने पापा को दौड़ कर गले लगा लिया। और मेरी आँखों से आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे। पापा को समझ नहीं पा रहे थे। आखिर हो क्या रहा है मैं क्यों रो रहा हूँ? मैंने पापा से कहा-- "पापा मुझे मोटरसाइकिल नहीं चाहिए। आप अपने लिए जूते ले लीजिए। अब आज से मैं जो भी करुंगा अपनी मेहनत से अपने बलबूते पर पढ़ कर करूंगा।
दोस्तो....! बस इतनी सी थी ये कहानी.........



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